ज़िंदगी की यही रीत है, हार के बाद ही जीत है ।

Published on: 13 Feb 2024

यह सच है कि किसी भी मनुष्य ने हार को चखे बगैर सफलता का अनुभव नहीं किया है।उपर्युक्त पंक्ति के द्वारा हमें कुदरत के स्वभाव के बारे में पता चलता है। यह अक्सर देखा जाता है कि सफलता के मार्ग पर चलते हुए हार का सामना होने पर व्यक्ति अपना मनोबल खो बैठता है। एक बच्चे को यदि गिरने का अनुभव नहीं होगा, तो वह गड्ढे और ज़मीन के बीच की ऊँचाई को नहीं भाँप सकेगा और उसे कभी पता नहीं चलेगा कि जो वह करने जा रहा है, वास्तव में वह उसके लिए लाभदायक नहीं है। ज़िंदगी में हार जाना गलत बात नहीं है, बल्कि उस हार से सीख न लेना गलत बात है। जिस तरह से एक कुम्हार मिट्टी को आकार देकर उससे एक घड़ा बना लेता है, उसी प्रकार ज़िंदगी में हार का सामना हमें एक बेहतर मनुष्य बनाता है। पूरे विश्व में ऐसा कोई नहीं जिसे हार का सामना न करना पड़ा हो।

सफलता हमारी ज़िंदगी में मिठास लाती है। मिठास की मात्रा अधिक न हो, उसके लिए हार जैसी खट्टी चीज़ का मेल ज़रूरी है। हार जाने के कारण हम इतने दुखी हो जाते हैं कि हम हमेशा हार को गलत समझते हैं, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि इस हार के अनुभव से हम आगे की ज़िंदगी में वही गलती दोबारा नहीं करेंगे। हार जाने का मतलब यह नहीं कि हमें हाथ पर हाथ रखे बैठे रहना है। हारना हमें इतना ऊँचा उठने का मौका देता है जिससे कि हराने वाले भी आपकी तारीफ़ करने पर मजबूर हो जाते हैं। सचिन तेंदुलकर यदि शून्य पर आउट नहीं होते तो उन्हें कभी यह पता ही नहीं चलता कि किस गेंदबाज़ को किस तरह खेलना है और आज वे क्रिकेट के बादशाह नहीं होते। हमेशा जीत के पीछे चलने से हमें उन अवगुणों का पता नहीं चलता जो हम में है। भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने भी कहा है कि हार जाना कभी भी ज़िंदगी का अंत नहीं है, क्योंकि हार हमें सफलता के पास ले जाता है। हम अक्सर देखते हैं कि जिन मनुष्यों को सफ़लता की आदत हो जाती है, वे घमंड में चूर हो समझने लगते हैं कि उनसे बेहतर और कोई नहीं हो सकता। हम जानते हैं कि अहंकार में डूबकर किया गया कार्य सदैव नुकसानदायक होता है। हार का सामना व्यक्ति को सिखाता है कि जीवन में मेहनत बरकरार रखनी चाहिए और एक सफलता प्राप्त कर दूसरे को हासिल करने के लिए उससे भी ज़्यादा मेहनत करनी चाहिए। कहते हैं कि जब सुख का एक दरवाज़ा बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है, बस उसे महसूस करने की ज़रूरत होती है। ज़िंदगी से जो हार मान जाता है,वह जीत कर भी हार जाता है और जो जीतने की ठान लेता है, वह हारते हुए भी जीत जाता है। हम सब में सफ़ल होने के गुर होते हैं, ज़रूरत है तो बस उन्हें तलाशने की। ज़िंदगी हर दिन नए रास्ते दिखाती है और उन रास्तों में अड़चने भी आती हैं। अड़चनों को पार करके ही हम आगे बढ़ सकते हैं। उन्हें पार करते-करते पता ही नहीं चलेगा कि कब हमने मंजिल पा ली और कब ये पंक्तियां सार्थक हो उठीं –

ज़िंदगी की यही रीत है,

हार के बाद ही जीत है।

Chirag Tulsian, Class 9 A