जीवन में सकारात्मक कैसे बने रहें?

Published on: 13 Jul 2023

जैसे एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक वैसे ही जहाँ  पर सकारात्मकता है, वहाँ नकारात्मकता  भी होती है। पहले तो हम यह जान लेते हैं कि नकारात्मक विचार हमारे मन में आते कैसे है? वजह यह है कि हमारे दिमाग पर अच्छी घटनाओं से ज़्यादा बुरी घटनाओं का असर पड़ता है। हमारे जीवन की अच्छी घटनाओं को दिमाग सुरक्षित कर लेता है ओर उसे लगता है कि हर बुरी घटना से हमारे शरीर को बचाना होगा, पर हो जाता है उसके विपरीत। दिमाग बुरी घटनाओं पर ज्यादा सक्रिय हो जाता है और वो बातें लंबे समय तक हमारे मन पर छाई रह जाती है। निराशा और नकारात्मकता का दूसरा कारण हमारे चारों तरफ़ ठगी, चोरी, हिंसा, भ्रष्टाचार आदि के  समाचार भरे होते हैं, जो पूरे दिन हमारी चर्चा के विषय होते हैं। यह मानव स्वभाव है कि हम किसी की कमियों या बुराइयों पर रस लेकर चर्चा करते हैं। ऐसा करने पर हमारे शरीर में नकारात्मक ऊर्जा का संचालन होता है। यही कारण है कि आज कल मनुष्य के अंदर  लालच, स्वार्थ, क्रोध, ईर्ष्या  आदि मनोविकार हावी होकर मन पर काबू कर रहें हैं और इन्हीं  विकारों के अनुसार मनुष्य आचरण करने लगता है ।इन्हीं कारणों से  हमारे मनीषियों ने चित्त की शुद्धता पर विशेष ध्यान देने का आग्रह किया। बाबा तुलसीदास कहते हैं –

"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।"

कहने का आशय है कि भावना अच्छी नहीं होगी तो ईश्वर भी उसका भला नहीं कर सकते ।

नकारात्मक विचार बहुत घातक होते हैं । इसकी वजह से मनुष्य अपना मानसिक संतुलन तक खो देता है और अवसाद में डूब कर हत्या या आत्महत्या तक कर लेता है।

मेरे एक मित्र को उसके करीबी मित्र ने धोखा दे दिया और उससे मित्रता तोड़ ली। बस क्या था, इस छल और  प्रवंचना की जाल में ऐसा फ़सा कि जीने की उम्मीद ही छोड़ दी। एक हँसमुख, ज़िंदादिल इंसान की पूरी कायापलट हो गई। माता – पिता पर तो मानो पहाड़ टूट गया। उनका होनहार , प्रतिभाशाली पुत्र में जिजीविषा ही समाप्त हो गई। बड़े -बड़े मनोचिकित्सक, सलाहकार किसी की तरकीब काम ना आई। अंत में माता – पिता अपने पैतृक गाँव लौटे और प्रकृति की गोद में ही समस्या का समाधान खोजने लगे। मेरा मित्र प्रतिदिन की तरह उदास बैठा था, तभी ज़ोर की आँधी चलने लगी और एक छोटी सी चिड़िया कहीं से आकर उसकी गोद में गिरी तथा पनाह खोजने लगी।

मेरा मित्र अचल बैठा उसे देख रहा था। क़रीब एक घंटे के बाद आँधी रुकी, परंतु ना बारिश रुकी और ना हीं अंधकार छटा था। मित्र की माँ ने चिड़िया को दाना खिलाने की कोशिश की, पर वह मित्र की गोद में ही सहमी पड़ी थी। अगले दिन सुबह, बाहर का दृश्य रात के  भयावह पल को बयाँ कर रहा था ।

देखते ही देखते छोटी-सी चिड़िया ने एक ऊँची उड़ान भरी और आसमान में चक्कर लगाने लगी। उसे देख मेरे मित्र की आँखें में अचानक चमक आई। उस दिन के बाद से चिड़िया के इनके घर आने, चहचहाने, मेरे मित्र का उसके पीछे व्यस्त रहने का सिलसिला जारी रहा। एक दिन वह फिर से अपनी  ज़िंदादिली में लौट आया। अपने मित्र को  देख मेरे मन में हरिवंश राय बच्चन की कविता गूंजने लगी –

"डगमगाए जब कि कंकड़

ईंटपत्थर के महलघर

बोल आशा के विहंगम

किस जगह पर तू छिपा था ?"

इस घटना ने मेरी आँखें खोल दी। मैं समझ गया कि बेईमानी, छल–कपट, फ़रेब और धोखाधड़ी की अनेक घटनाओं से किसी के निःस्वार्थ, अकारण सहयोग एवं प्रेम की एक घटना हज़ार गुना अधिक प्रभावशाली होती है। अत: निराशा में डूबने की ज़रूरत नहीं है। जीवन में सुविचारों पर अधिक से अधिक चर्चा करे तथा इन संजीवनी विचारों को अपने तक सीमित ना रखे। इनका प्रचार -प्रसार भी करें। नकारात्मक विचार हमें ही नुक़सान पहुँचाते है। अतः इनसे दूरी बनाए और सकारात्मक बने रहें।

Keshav Jhanwar, Class 10 D